अभिनेत्री और पशु अधिकारों की प्रबल समर्थक रूपाली गांगुली ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर अपनी नाराज़गी जताई है, जिसमें दिल्ली औरएनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से सार्वजनिक स्थलों से हटाने का आदेश दिया गया है। उन्होंने इस आदेश को “बेसिर-पैर” बताया और मुख्य न्यायाधीश से इसे रद्द करने की भावुक अपील की।
गांगुली ने कहा: “मैं बस हर दिन प्रार्थना कर रही हूं कि किसी तरह भारत के मुख्य न्यायाधीश इस आदेश को रद्द कर दें, क्योंकि इसका कोई मतलब नहीं है, यह पूरी तरह से बेसलेस है। सुप्रीम कोर्ट का पूरा सम्मान करते हुए — कृपया इस आदेश को वापस लिया जाए।”
11 अगस्त 2025 को पारित इस आदेश के तहत दिल्ली और आसपास के इलाकों से आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से बंदीगृहों में रखने औरदोबारा सड़कों पर न छोड़ने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने इसे जनसुरक्षा का मामला बताया, लेकिन इस फैसले ने देशभर में बहस छेड़ दी है — जहांएक ओर लोग सुरक्षा की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पशु अधिकार कार्यकर्ता इसे अमानवीय बता रहे हैं।
रूपाली, जो लंबे समय से जानवरों के हक़ में आवाज़ उठाती रही हैं, ने इस आदेश को संवेदनहीन और असंवेदनशील बताया और कहा कि यह कोईस्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि समस्या की जड़ को समझे बिना ऐसा कठोर कदम उठाना सही नहीं है। इसी बातचीत के दौरानरूपाली ने एक वायरल वीडियो पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें जया बच्चन एक फैन द्वारा सेल्फी लेने की कोशिश पर नाराज़ होती दिखाई दी थीं। इसपर उन्होंने कहा: “जया बच्चन ने कोरा कागज़ फिल्म में मेरे पिताजी के साथ काम किया था, और उस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिलाथा। मैंने अभिनय सीखना उनकी फिल्मों से शुरू किया था। लेकिन मैं बस यही उम्मीद करती हूं कि लोग उनसे अभिनय तो सीखें, पर ऐसा बर्तावनहीं।”
उनकी यह टिप्पणी सम्मानजनक होते हुए भी साफ़ तौर पर एक निराशा जाहिर करती है — खासकर तब जब किसी वरिष्ठ कलाकार का सार्वजनिकव्यवहार उनके ऑन-स्क्रीन व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता।
रूपाली गांगुली की यह दोहरी प्रतिक्रिया — एक ओर जानवरों के हक़ की आवाज़ और दूसरी ओर सेलिब्रिटीज़ की जिम्मेदारी पर सवाल — एक बड़ासंदेश देती है: समाज में करुणा, समझदारी और जवाबदेही सिर्फ कानून या शोहरत से नहीं आती, बल्कि इंसानियत और संवेदनशीलता से आती है।