भारतीय संगीत प्रसारण उद्योग की कड़ी आलोचना करते हुए, प्रसिद्ध गीतकार और फिल्मकार मयूर पुरी ने देशभर के गीतकारों, संगीतकारों औररचनाकारों के साथ होने वाले संगठित और जानबूझकर शोषण के खिलाफ आवाज उठाई है। पुरी के अनुसार, वे ही प्लेटफॉर्म जो संगीत परफलते-फूलते हैं—निजी रेडियो स्टेशन और डिजिटल स्ट्रीमिंग सेवाएं—मूल कलाकारों को उनके बुनियादी रॉयल्टी भुगतान करने से इनकार कर रही हैं।
पुरी कहते हैं, “कोई भी रेडियो शो चालू करो, कोई भी चैनल, आरजे ये बताता रहेगा कि उसे संगीत से कितना प्यार है, संगीत को समर्पित है, लेकिनपर्दे के पीछे वे विज्ञापन की कमाई खाते रहते हैं और गीत लिखने या कंपोज करने वालों को भुगतान नहीं करते। ये कानूनन ज़रूरी है, फिर भी कोईपरवाह नहीं करता।”
भारत के पास विश्व के सबसे बेहतरीन रॉयल्टी कानूनों में से एक है, लेकिन इसका पालन नहीं होता। “रेडियो स्टेशनों को दो बार हाई कोर्ट में शर्मनाकहार का सामना करना पड़ा है, फिर भी वे रॉयल्टी देने से इंकार करते हैं। अब हम सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं। शायद वे वहां और ज्यादा शर्मिंदगी चाहते हैं।”
पुरी कोई सामान्य कलाकार नहीं हैं। वे बॉलीवुड के सबसे सम्मानित गीतकारों में से एक हैं, जिनके गीत ओम शांति ओम, हैप्पी न्यू ईयर, और ABCD जैसी फिल्मों में हैं। उनकी हैप्पी न्यू ईयर की पटकथा को 2014 में अकैडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज के स्थायी कोर कलेक्शन मेंशामिल किया गया। इसके अलावा उन्होंने पुरस्कार विजेता शॉर्ट फिल्म फिरदौस निर्देशित की है और एवेंजर्स: एंडगेम, द लायन किंग, और जोजो रैबिटजैसी बड़ी फिल्मों का हिंदी में अनुवाद भी किया है, जो उनकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता को दर्शाता है।
पुरी निजी रेडियो स्टेशनों और सरकारी प्रसारकों के बीच स्पष्ट अंतर बताते हैं। “हम कलाकार बड़े दिल वाले और जिम्मेदार नागरिक हैं, अगर हमारे गानेआकाशवाणी या दूरदर्शन पर चलते हैं—जहां ये सैनिकों, किसानों, दूर-दराज इलाकों के लोगों तक पहुंचते हैं—तो हम रॉयल्टी नहीं लेते, हमें नहींचाहिए। ये हमारी देशभक्ति है। लेकिन निजी रेडियो स्टेशन? आप सेवा नहीं कर रहे, आप पैसे कमा रहे हैं। करोड़ों की विज्ञापन कमाई कर रहे हैं औरगीतकारों को एक भी पैसा नहीं दे रहे। ये गैरकानूनी ही नहीं, अनैतिक भी है।”
पुरी की आलोचना केवल पारंपरिक मीडिया तक सीमित नहीं है। उन्होंने भारत के सबसे बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी निशाना साधा, एक प्रमुखभारतीय स्ट्रीमिंग सेवा का नाम लिए बिना। “एक प्लेटफॉर्म है—भारतीय— मैं नाम नहीं लूंगा क्योंकि अपनी जान पसंद है, वे हमारे गाने मुफ्त में स्ट्रीमकरते हैं, देश की सबसे बड़ी मोबाइल सेवा रखते हैं, हमारे गाने कॉलर ट्यून के तौर पर इस्तेमाल करते हैं और सब्सक्रिप्शन में बंडल करते हैं। जब हमनेकोर्ट का रुख किया तो उन्होंने इनकार कर दिया। कहा, ‘यह एक बंडल सेवा है।’ कोर्ट ने कहा कि वे ये मुफ्त में कर रहे हैं। मैं पूछता हूं—फ्री में कुछकैसे बेचा जा सकता है? वह गीत मेरा बच्चा है, और आप मेरे बच्चे को मुफ्त में बेच रहे हैं।”
पुरी बताते हैं कि इस शोषण के असली जीवन पर गंभीर असर पड़ता हैं। भारतीय कलाकारों के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। “हमारे उद्योग मेंकोई पीएफ, पेंशन, बीमा या सुरक्षा नहीं है। कोई व्यवस्था नहीं। तमिलनाडु में ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन में 3,000 से अधिक गाने लिखे हैं।वे राष्ट्रीय खजाने होने चाहिए। लेकिन उनके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं। अगर किसी को कल दिल का दौरा पड़ गया तो उनकी सारी बचतखत्म।”
पुरी कहते हैं, “यह सिर्फ उद्योग की समस्या नहीं है, यह राष्ट्रीय शर्म है। हम एक राष्ट्र के रूप में अपने कलाकारों के साथ बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं,और कोई परवाह नहीं करता।”
मयूर पुरी की ये बातें एक चेतावनी और लड़ाई का बुलावा हैं। वे एक ऐसे सिस्टम को चुनौती दे रहे हैं जो रचनात्मकता का शोषण करता है औरकॉर्पोरेट लालच को बढ़ावा देता है। उनका कहना है, “यह गलत है। और हम सबको इसका खामियाजा भुगतना होगा।”