सेना का ‘फील्ड मार्शल’ पद आजकल सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है। इस चर्चा की वजह पाकिस्तान द्वारा हाल ही में अपने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करना है। यह वही जनरल असीम मुनीर हैं जिनकी वीडियो हाल में सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी, जिसमें वे भारत के खिलाफ कड़े बयान देते हुए दिखे थे। ऐसे में ‘फील्ड मार्शल’ के पद और उसकी गरिमा को लेकर लोग जानने को उत्सुक हैं कि यह पद क्या है और भारत समेत अन्य देशों में इसका क्या महत्व है।
फील्ड मार्शल पद क्या है?
फील्ड मार्शल एक पांच सितारा सैन्य रैंक होता है, जो सैन्य इतिहास में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। यह पद केवल असाधारण सैन्य उपलब्धियों और नेतृत्व के लिए दिया जाता है। इसे प्राप्त करना बेहद कठिन होता है और यह सामान्य सेवा रैंक नहीं, बल्कि एक मानद और सम्मानजनक पदवी होती है। डिफेंस विशेषज्ञों के अनुसार, फील्ड मार्शल की उपाधि ऐसे सैन्य अधिकारियों को दी जाती है जिनका देश की रक्षा और सैन्य रणनीति में अमूल्य योगदान होता है।
पाकिस्तान में इस पद को लेकर अब तक केवल दो सैन्य अधिकारियों को सम्मानित किया गया है, जिनमें असीम मुनीर के अलावा पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख अयूब खान शामिल हैं।
भारत में फील्ड मार्शल पद की महत्ता और इतिहास
भारत में अब तक केवल दो सैन्य अधिकारियों को फील्ड मार्शल का पद मिला है।
पहले फील्ड मार्शल थे सैम मानेकशॉ, जिन्हें ‘सैम बहादुर’ के नाम से जाना जाता है। मानेकशॉ ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व किया और पाकिस्तान को करारी हार दिलाई, जिससे बांग्लादेश का गठन हुआ। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता के लिए उन्हें भारत का पहला फील्ड मार्शल बनाया गया। इसके अलावा उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी बहादुरी के कई उदाहरण प्रस्तुत किए और कई सैन्य सम्मान पाए।
दूसरे फील्ड मार्शल थे के. एम. करिअप्पा, जिन्होंने स्वतंत्र भारत की पहली सेना कमान संभाली। उन्होंने भारतीय सेना के भारतीयकरण में अहम भूमिका निभाई और 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर बहादुरी से लड़ाई लड़ी। करिअप्पा ने भारतीय सेना को ब्रिटिश अधिकारियों के प्रभुत्व से मुक्त कर भारतीय नेतृत्व में लाने का काम किया। उनकी सैन्य सेवा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मान मिला, और वे कई विदेशी सम्मानों से नवाजे गए।
फील्ड मार्शल पद का महत्व
सेना के डिफेंस एक्सपर्ट सुमित चौधरी के अनुसार, फील्ड मार्शल की उपाधि वर्तमान समय में मिलना बहुत ही दुर्लभ और मुश्किल है। आधुनिक युद्ध तकनीक और रणनीतियों ने सैन्य पदानुक्रम में बदलाव किए हैं, जिसके चलते इस पद की भूमिका काफी सीमित हो गई है। बावजूद इसके, इसका ऐतिहासिक और सम्मानजनक महत्व अभी भी बरकरार है।
फील्ड मार्शल को सैन्य प्रतिष्ठान में आजीवन सर्वोच्च सम्मान प्राप्त होता है। वे अपने अनुभव और नेतृत्व कौशल से देश की रक्षा नीतियों और सैन्य रणनीतियों को दिशा देते हैं। हालांकि वे सक्रिय सेवा में नहीं होते, परंतु उनका योगदान देश के लिए अमूल्य माना जाता है।
फील्ड मार्शल पद विश्वभर में
भारत और पाकिस्तान के अलावा कई देशों में भी फील्ड मार्शल की उपाधि मिलती है:
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ब्रिटेन: ब्रिटिश सेना में फील्ड मार्शल का पद ऐतिहासिक रूप से सबसे ऊँचा सैन्य रैंक माना जाता है। कई प्रतिष्ठित जनरलों को यह पद प्राप्त हुआ है।
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जर्मनी: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कई जर्मन जनरलों को फील्ड मार्शल बनाया गया था, यह पद उनके सैन्य नेतृत्व के सम्मान में दिया जाता था।
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फ्रांस: फ्रांस में इसे "Maréchal de France" कहा जाता है, जो एक मानद पद है और इसे केवल असाधारण सैन्य उपलब्धियों के लिए दिया जाता है।
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रूस: रूस में भी इस पद का उपयोग हुआ है, हालांकि आधुनिक दौर में यह कम प्रचलित हो गया है।
पाकिस्तान में असीम मुनीर की भूमिका
जनरल असीम मुनीर, जो पाकिस्तान के सेना प्रमुख हैं, उनकी हालिया वीडियो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में रही। इसमें वे भारत के खिलाफ तीखे बयान देते दिखे थे। उनकी इस भूमिका को देखते हुए पाकिस्तान ने उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया है। इससे पहले यह सम्मान पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख अयूब खान को मिला था।
निष्कर्ष
फील्ड मार्शल का पद न केवल सैन्य सम्मान है, बल्कि यह सैन्य इतिहास और देशभक्ति की सर्वोच्च मिसाल भी है। भारत के दो महान फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और के. एम. करिअप्पा ने अपने देश के लिए अद्वितीय योगदान दिया है। पाकिस्तान में असीम मुनीर को यह पद मिलना नई राजनीतिक और सैन्य स्थिति को दर्शाता है।
यह पद केवल सैन्य कौशल ही नहीं बल्कि नेतृत्व, रणनीति और देशभक्ति का प्रतीक होता है। हालांकि वर्तमान में यह पद सैद्धांतिक और सम्मानजनक बन गया है, लेकिन इसका गौरव और इतिहास किसी भी देश के लिए गर्व का विषय होता है।
इसलिए फील्ड मार्शल की चर्चा और उसकी महत्ता पर न केवल सैन्य विशेषज्ञ बल्कि आम जनता भी ध्यान देती है। यह पद हमें याद दिलाता है कि देश की रक्षा और सैनिकों की बहादुरी कितनी महत्वपूर्ण होती है, और इसे सम्मान देने का तरीका भी उतना ही गंभीर और गरिमापूर्ण होना चाहिए।