रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी बहुप्रतीक्षित 4 से 5 दिसंबर की भारत यात्रा से ठीक पहले, यूरोप को एक कड़ा और सीधा संदेश दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर यूरोपीय देश किसी तरह का संघर्ष या जंग चाहते हैं, तो रूस इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। पुतिन का कहना है कि रूस अपनी ओर से युद्ध शुरू नहीं करना चाहता, लेकिन अगर उसे मजबूर किया गया, तो वह पीछे नहीं हटेगा।
पुतिन का यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस और यूरोप के बीच तनाव अपने चरम पर है। पश्चिमी देश, विशेष रूप से यूरोपीय संघ, यूक्रेन को लगातार सैन्य और आर्थिक मदद दे रहे हैं, जिससे रूस और यूरोप के बीच की खाई और गहरी हो गई है।
शांति की 'अस्वीकार्य' शर्तें
पुतिन ने यूरोप पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यूरोपीय संघ यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए ऐसी डिमांड रख रहा है, जिसे रूस किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं कर सकता। रूस ने इसे बातचीत के दरवाजे बंद करने का यूरोपीय तरीका बताया।
पुतिन ने यह भी दावा किया कि यूरोपीय शक्तियां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शांति समझौते के प्रयासों में लगातार बाधा डाल रही हैं। उनका आरोप है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है, ताकि रूस पर शांति न चाहने का झूठा आरोप लगाया जा सके।
पुतिन ने कहा कि यूरोप ने रूस के साथ सभी संपर्क तोड़कर खुद को शांति वार्ता से बाहर कर लिया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि शांति प्रक्रिया तभी आगे बढ़ सकती है जब सभी पक्ष बातचीत के लिए गंभीर हों और एक-दूसरे की सुरक्षा चिंताओं को समझें।
यूक्रेन में तेज हुई मोर्चाबंदी
पुतिन के इस आक्रामक बयान के बीच यूक्रेन में लड़ाई पहले से कहीं अधिक तेज हो गई है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच मोर्चाबंदी (Trench Warfare) तेज होती जा रही है, खासकर एक रणनीतिक शहर पोकरेव्स्क को लेकर बड़ा संघर्ष चल रहा है।
पोकरेव्स्क का महत्व: यह शहर सैन्य दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई जरूरी सैन्य और सप्लाई रूटों का केंद्र है। इस पर नियंत्रण से सेनाओं को रसद और सुदृढ़ीकरण में भारी लाभ मिलता है।
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रूस का दावा: रूस ने हाल ही में दावा किया है कि उसकी सेना ने पोकरेव्स्क पर कब्जा कर लिया है।
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यूक्रेन का खंडन: हालांकि, यूक्रेन ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है। यूक्रेन की सेना ने कहा कि शहर में अभी भी लड़ाई जारी है और रूस का इस पर पूरा नियंत्रण नहीं है।
दोनों देशों के बीच संघर्ष तेज होने से यह संकेत मिलता है कि पुतिन की भारत यात्रा के बावजूद, युद्धभूमि पर तनाव कम होने की संभावना कम है। पुतिन का यूरोप को यह सीधा संदेश भारत के साथ उनकी बातचीत के दौरान वैश्विक सुरक्षा पर उनकी कठोर स्थिति को रेखांकित करता है।