घरेलू हिंसा के दौरान महिलाओं पर तेजाब फेंकने की घटनाओं के बीच, अब एक और गंभीर और क्रूर प्रवृत्ति सामने आई है: घरेलू हिंसा में महिलाओं को जबरन एसिड पिलाना (Forced Acid Ingestion)। इस मामले को लेकर खुद एक एसिड पीड़िता, शाहीन मलिक, ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने ऐसी पीड़िताओं के लिए एक अलग और स्पष्ट कानून बनाने की मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग पर गंभीर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
मौजूदा कानून में मुआवजे का अभाव
शाहीन मलिक का कहना है कि एसिड अटैक सर्वाइवर्स को विकलांगता का दर्जा देने वाला जो राइट्स ऑफ पर्सन्स विथ डिसेबिलिटीज एक्ट, 2016 (RPwD Act) बना था, उसमें 'एसिड पिलाए जाने' जैसी घटनाओं से पीड़ित महिलाओं के लिए पर्याप्त मुआवजे या विशिष्ट प्रावधानों का अभाव है।
उन्होंने कोर्ट को अपनी और अन्य पीड़िताओं की व्यथा बताते हुए कहा कि एसिड पिलाए जाने के कारण पीड़िताएं गंभीर विकलांगता का शिकार होती हैं, आर्टिफिशियल फीडिंग ट्यूब पर जीने को मजबूर हो जाती हैं। चूंकि उनके घाव अक्सर बाहर से दिखाई नहीं देते, इसलिए उन्हें सामाजिक-कानूनी मदद भी मुश्किल से मिल पाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने देरी को कहा 'राष्ट्रीय शर्म'
याचिकाकर्ता शाहीन मलिक की कहानी दर्दनाक और प्रेरणादायक है। 2009 में जब वह 26 साल की थीं और दिल्ली में एमबीए कर रही थीं, तब उन पर तेजाब फेंका गया था। इसके बाद उन्होंने 25 रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी कराईं, लेकिन उनका मूल केस अभी भी रोहिणी कोर्ट में 16 साल से लंबित पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस ज्योमलया बागची ने इस न्यायिक देरी को 'राष्ट्रीय शर्म' कहा। CJI ने साफ शब्दों में कहा कि एसिड अटैक के आरोपी किसी सहानुभूति के लायक नहीं हैं, और न्याय प्रणाली को ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
एसिड सर्वाइवर्स के लिए बेहतर अधिकारों की मांग
शाहीन मलिक की याचिका का मुख्य उद्देश्य यह है कि एसिड पिलाए जाने से पीड़ित महिलाओं को भी RPwD Act 2016 के तहत विकलांगता का दर्जा मिले, जिससे वे निम्न लाभों का दावा कर सकें:
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विकलांगता प्रमाण पत्र प्राप्त करना।
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सरकारी नौकरियों में आरक्षण पाना।
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शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कौशल विकास जैसे लाभ प्राप्त करना।
शाहीन मलिक, जो अब ब्रेव सोल्स फाउंडेशन चलाती हैं और एसिड पीड़िताओं को शेल्टर, काउंसलिंग और कानूनी मदद देती हैं, उनकी यह लड़ाई सिर्फ उनके अपने न्याय के लिए नहीं है, बल्कि देश की हर उस महिला के लिए है जो इस अमानवीय अपराध की शिकार होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में न्याय में देरी न हो, इसके लिए रोजाना सुनवाई होनी चाहिए। यह कदम एसिड अटैक पीड़िताओं के लिए न्याय की प्रक्रिया को तेज़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।