बिहार की राजनीति में नाथनगर विधानसभा सीट इस बार सुर्खियों में है। इस क्षेत्र में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बार नए चेहरों पर दांव खेला है। नाथनगर सीट, जो भागलपुर जिले के अंतर्गत आती है, लंबे समय से जातीय और सामुदायिक समीकरणों का केंद्र रही है, लेकिन इस बार का चुनाव पूरी तरह अलग नजर आ रहा है। यहां की जनता अब जाति नहीं, बल्कि काम के आधार पर नेता चुनने का मूड बना चुकी है।
| उम्मीदवार का नाम |
पार्टी |
सिंबल |
| मिथुन कुमार |
एलजेपी |
हेलीकॉप्टर |
| रविश चंद्र रवि कुशवाहा |
बीएसपी |
हाथी |
| शेख जियाउल हसन |
राजद |
लालटेन |
| अजय कुमार राय |
जन सुराज पार्टी |
स्कूल का बस्ता |
| मो. इस्माइला |
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन |
पतंग |
| मो. मंजर आलम |
भारतीय पार्टी (लोकतांत्रिक) |
बाल्टी |
| सुशील कुमार यादव |
पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) |
फलों से युक्त टोकरी |
| अरविंद मंडल |
निर्दलीय |
अलमारी |
| चेतन राम |
निर्दलीय |
गैस सिलेंडर |
| जयप्रकाश मंडल |
निर्दलीय |
प्रेशर कुकर |
| जयकरण पासवान |
निर्दलीय |
अंगूठी |
| दयाराम मंडल |
निर्दलीय |
एयरकंडीशनर |
| शनिज कुमार |
निर्दलीय |
सेब |
| शारदा देवी |
निर्दलीय |
बेबी वॉकर |
| सुधीर कुमार |
निर्दलीय |
बल्ला |
राजद (RJD) ने इस बार बड़ा राजनीतिक जोखिम लेते हुए अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर पूर्व प्रशासनिक अधिकारी शेख जियाउल हसन को उम्मीदवार बनाया है। माना जा रहा है कि हसन की साफ छवि और प्रशासनिक अनुभव को पार्टी जनता के बीच अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करेगी। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने जिला परिषद अध्यक्ष मिथुन यादव को मैदान में उतारा है। यादव समुदाय की पकड़ और स्थानीय लोकप्रियता को देखते हुए एलजेपी को उम्मीद है कि वे यहां परंपरागत वोट बैंक को भुना सकेंगे।
इसके साथ ही एआईएमआईएम (AIMIM), बसपा (BSP) और जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार भी इस चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। इन दलों की मौजूदगी ने नाथनगर के राजनीतिक समीकरणों को और जटिल बना दिया है। खासकर एआईएमआईएम की एंट्री ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की आशंका को बढ़ा दिया है।
राजद और एलजेपी दोनों ही दल इस स्थिति को लेकर सतर्क हैं। राजद जहां मुस्लिम-यादव समीकरण को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रही है, वहीं एलजेपी प्रत्याशी मिथुन यादव गंगौता और पिछड़ा वर्ग के वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
नाथनगर का भौगोलिक और सामाजिक स्वरूप भी इसके चुनावी मिजाज को खास बनाता है। इस क्षेत्र के बगल से गंगा नदी बहती है, जो हर साल बाढ़ और कटाव का कारण बनती है। राजनीतिक रूप से भी यहां का माहौल कुछ वैसा ही है — एक तरफ के समीकरण टूटते हैं तो दूसरी तरफ नए गठजोड़ बन जाते हैं। यही कारण है कि यहां के चुनाव परिणाम हमेशा अप्रत्याशित रहे हैं।
नाथनगर की सियासी अहमियत
नाथनगर अब सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं रही, बल्कि बिहार की राजनीति का “मिजाज नापने वाला थर्मामीटर” बन चुकी है। यहां की जनता ने पिछले कई दशकों में राजनीतिक बदलावों की दिशा तय की है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार अली अशरफ सिद्दीकी को 40.4 प्रतिशत वोट मिले थे और उन्होंने करीब 7756 वोटों से जीत दर्ज की थी। उस समय यह सीट राजद और जदयू के बीच सीधी टक्कर में रही थी। इस बार हालांकि मैदान पूरी तरह खुला है और मुकाबला त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय होने की संभावना है।
निर्दलीयों का प्रभाव
नाथनगर में इस बार कई निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में हैं। इनमें कुछ स्थानीय स्तर पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेता शामिल हैं, जो प्रमुख दलों के उम्मीदवारों का गणित बिगाड़ सकते हैं। ये निर्दलीय उम्मीदवार कई बार स्थानीय मुद्दों — जैसे गंगा कटाव, सड़क निर्माण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं — को लेकर जनता के बीच गहरी पैठ बना लेते हैं।
जनता का रुख बदलता हुआ
इस बार नाथनगर की जनता पारंपरिक राजनीति से आगे बढ़ती दिख रही है। लोग अब यह नहीं पूछ रहे कि उम्मीदवार किस जाति या धर्म से है, बल्कि यह जानना चाह रहे हैं कि उसने इलाके के लिए क्या किया है। यही मानसिकता नाथनगर को “बदलाव की प्रयोगशाला” बनाती है।