ईरान और इजरायल के बीच छिड़े युद्ध ने न सिर्फ मध्य पूर्व को झकझोर दिया है, बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। इस भीषण संघर्ष में जहां एक ओर दोनों देश मिसाइलों और ड्रोन हमलों का सहारा ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इजरायल को युद्ध की सबसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है — आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक रूप से।
🇮🇱 इजरायल की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ
इजरायल के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, युद्ध के पहले 7 दिनों में ही हर दिन लगभग 200 मिलियन डॉलर (₹17,324 करोड़ रुपये) का खर्च केवल मिसाइल इंटरसेप्टर्स और सैन्य अभियानों पर हुआ है।
इसका सबसे बड़ा कारण है ईरान की ओर से लगातार दागी जा रही मिसाइलों को रोकने के लिए "आयरन डोम", "एरो-3", और "डेविड स्लिंग" जैसे एडवांस इंटरसेप्टर सिस्टम्स का इस्तेमाल।
एक इंटरसेप्टर मिसाइल की लागत लगभग $1 लाख से $1.5 लाख के बीच होती है।
एक दिन में 100 से अधिक इंटरसेप्टर्स फायर हो रहे हैं।
पुनर्निर्माण में $400 मिलियन का अनुमान
ईरान की मिसाइलों से तेल अवीव, हाइफा, अशकलोन और कई रिहायशी इलाकों में बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है।
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कई सरकारी भवन, हेड ऑफिस और नागरिक मकान पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं।
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हजारों परिवारों को स्थानांतरण (evacuation) करना पड़ा है।
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बिजली, पानी और ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाएं बाधित हो गई हैं।
इजरायल सरकार का अनुमान है कि युद्ध समाप्त होने के बाद पुनर्निर्माण और नागरिक सेवाओं को बहाल करने में $400 मिलियन से ज्यादा खर्च हो सकता है
हथियारों की कमी: एक बड़ी चिंता
अब चिंता यह है कि इजरायल के पास स्टॉक में रखे हथियार खत्म हो रहे हैं।
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एरो इंटरसेप्टर्स, जो लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने में सक्षम हैं, अब सीमित संख्या में बचे हैं।
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अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो ईरान की लॉन्ग-रेंज मिसाइलें इजरायल के गहरे अंदर तक नुकसान पहुंचा सकती हैं।
यह स्थिति न सिर्फ इजरायल की सैन्य तैयारियों को कमजोर कर सकती है, बल्कि उसकी रणनीतिक स्थिति को भी वैश्विक मंच पर प्रभावित कर सकती है।
🇺🇸 अमेरिका ने फिलहाल टाला हमला
वहीं दूसरी ओर अमेरिका, जो शुरू में इजरायल के साथ खुलकर खड़ा नजर आ रहा था, अब दो हफ्तों की मोहलत लेकर खुद पीछे हट गया है।
व्हाइट हाउस ने साफ किया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी ईरान पर हमले का अंतिम आदेश नहीं दिया है।
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अमेरिका ने बताया कि उसने पूरी तैयारी कर ली है,
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लेकिन ट्रंप "डायरेक्ट वॉर ऑर्डर" फिलहाल नहीं देना चाहते।
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दो हफ्तों में स्थिति का फिर से मूल्यांकन किया जाएगा।
इसका असर यह है कि इजरायल को अभी अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप की उम्मीद छोड़नी पड़ सकती है, जबकि उसकी रक्षा निर्भरता बड़ी हद तक अमेरिका पर ही है।
🇷🇺 रूस की चेतावनी: "खामेनेई को नुकसान पहुंचाया तो अंजाम भुगतो"
मॉस्को ने इजरायल और अमेरिका को एक कड़ा संदेश दिया है।
रूस के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि यदि ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई को कोई नुकसान पहुंचाया गया,
तो यह पूरे मध्य पूर्व में कट्टरपंथ को भड़का देगा और यह संघर्ष एक वैश्विक संकट में तब्दील हो जाएगा।
“यह पैंडोरा बॉक्स खुलेगा, जिसे कोई भी बंद नहीं कर पाएगा।”
रूस का यह बयान साफ संकेत है कि वह किसी भी तरह की टारगेटेड किलिंग का समर्थन नहीं करेगा, और इस तरह की कार्रवाई से पश्चिमी देशों को बचना चाहिए।
अमेरिका की सैन्य तैनाती जारी
हालांकि अमेरिका ने हमला टाल दिया है, लेकिन मध्य पूर्व में अपनी सैन्य तैनाती को बढ़ा दिया है:
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फाइटर जेट्स की नई स्क्वाड्रन को तैनात किया गया है।
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THAAD और पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम पहले से ही इजरायल और कुवैत में मौजूद हैं।
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यूएस नेवी के युद्धपोत और एयरक्राफ्ट कैरियर रेड सी और पर्शियन गल्फ के बीच गश्त कर रहे हैं।
यह तैनाती बताती है कि अमेरिका युद्ध के लिए तैयार है, लेकिन सिर्फ “सही समय” का इंतजार कर रहा है।
निष्कर्ष: इजरायल की आर्थिक और सैन्य हालत गंभीर
ईरान के साथ युद्ध में इजरायल पर हर स्तर पर भारी दबाव है।
“अगर युद्ध जल्द नहीं थमा, तो इजरायल को अपनी रक्षा नीति और आर्थिक रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।”
दूसरी ओर अमेरिका की देरी और रूस की चेतावनी से यह साफ हो गया है कि यह युद्ध अब सिर्फ मिसाइलों का नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय रणनीति का खेल बन चुका है।
क्या इजरायल इस युद्ध में अकेला पड़ता जा रहा है? और क्या यह युद्ध वैश्विक संकट की ओर बढ़ रहा है? आने वाले सप्ताह इस सवाल का जवाब देंगे।