ईरान और अमेरिका के बीच चल रहे तनातनी के दौर में अब एक नया और बेहद गंभीर मोड़ आ गया है। ईरान के शीर्ष शिया धार्मिक नेताओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। यह फतवा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से अहम है बल्कि इसके अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी दूरगामी हो सकते हैं।
क्या है फतवे में?
ईरान के प्रभावशाली शिया धर्मगुरु ग्रैंड अयातुल्ला नासेर मकारिम शिराजी ने एक फतवा जारी कर ट्रंप और नेतन्याहू को "ईश्वर का शत्रु" करार दिया है। फतवे में दुनियाभर के मुसलमानों से आह्वान किया गया है कि वे इन दोनों नेताओं के खिलाफ खड़े हों और उन्हें मारने तक का समर्थन करें। यह बयान धार्मिक रूप से अत्यंत उग्र और संवेदनशील माना जा रहा है।
इसी के साथ, एक और प्रमुख शिया धर्मगुरु ग्रैंड अयातुल्ला नूरी हमदानी ने भी एक अलग फतवा जारी करते हुए कहा है कि,
“जो कोई भी ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई को धमकाएगा, वह खुदा का दुश्मन है और उसके खिलाफ जिहाद जायज़ है।”
क्यों जारी हुआ ये फतवा?
इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत ईरान के परमाणु ठिकानों पर इजरायली हमले से हुई। 12 जून 2025 को इजरायल ने गुप्त मिशन के तहत ईरान के कई परमाणु रिसर्च सेंटरों और ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन अटैक किए। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने इजरायल पर मिसाइलें दागीं और फिर अमेरिका ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए ईरान पर बमबारी की।
इसके बाद ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई ने ट्रंप और नेतन्याहू को चेतावनी दी कि,
“अगर अबकी बार ईरान के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई तो हम मध्य-पूर्व में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएंगे।”
ट्रंप का जवाब: “खामेनेई कृतघ्न है”
खामेनेई की धमकी के जवाब में डोनाल्ड ट्रंप ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि,
“हम जानते हैं कि खामेनेई किस बंकर में छिपे हैं। हमने उन्हें बर्बाद करने का मौका टाला और उन्होंने बदले में शुक्रिया कहने की जगह धमकी दी। वो एहसान फरामोश हैं।”
ट्रंप का यह बयान न केवल ईरानियों की नाराजगी को और भड़काने वाला था, बल्कि इससे ईरान के धार्मिक नेतृत्व को भी झटका लगा। इसी के बाद फतवा जारी किया गया।
12 दिन चली ईरान-इजरायल जंग
इस साल जून में ईरान और इजरायल के बीच करीब 12 दिन तक युद्ध जैसी स्थिति रही। इजरायल ने ईरान पर हमला किया, फिर ईरान ने जवाबी हमले किए। 11वें दिन अमेरिका ने खुद ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी कर दी और 13वें दिन कतर के जरिए सीजफायर की पहल हुई।
इजरायल ने सीजफायर के बाद चुप्पी साध ली, लेकिन ईरान अब भी अमेरिका और इजरायल के खिलाफ आक्रामक बयान दे रहा है।
धार्मिक नेताओं की भूमिका कितनी अहम?
रान में धार्मिक नेतृत्व राजनीति से कहीं अधिक शक्तिशाली है। अयातुल्ला खामेनेई देश के सर्वोच्च नेता हैं और धार्मिक फतवे का सीधा असर जनता और सरकारी निर्णयों पर होता है। ग्रैंड अयातुल्ला जैसे शीर्ष धर्मगुरुओं के फतवे, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। इससे कूटनीतिक तनाव, सुरक्षा चिंताएं, और धार्मिक असंतुलन पैदा हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया क्या हो सकती है?
अब जब ईरान के धार्मिक नेताओं ने खुलेआम ट्रंप और नेतन्याहू को मारने का आह्वान कर दिया है, तो यह निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और विश्व के इस्लामी देशों की नजर में संवेदनशील मुद्दा बन गया है। अमेरिका इस पर सुरक्षा परिषद में शिकायत दर्ज करा सकता है, वहीं इजरायल भी अपनी जवाबी नीति को और सख्त बना सकता है।
निष्कर्ष: तनाव कम होगा या जंग बढ़ेगी?
ईरान, इजरायल और अमेरिका के बीच लगातार बढ़ता तनाव अब धार्मिक उग्रता की ओर बढ़ रहा है। फतवों का इस्तेमाल आमतौर पर धार्मिक अनुशासन या नैतिक दिशा देने के लिए किया जाता है, लेकिन जब वे राजनीतिक दुश्मनों को मारने का निर्देश देने लगें, तो इसका अर्थ है कि स्थिति सामान्य नहीं है।
ऐसे में सबसे जरूरी है कूटनीतिक बातचीत, संयमित बयानबाज़ी और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह संघर्ष सिर्फ परमाणु मुद्दा नहीं रहेगा, बल्कि धार्मिक युद्ध की शक्ल भी ले सकता है।