मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में भारत के व्यापारिक हितों को दो तरफ से घेरा जा रहा है। जहाँ अमेरिका के साथ संबंध कूटनीतिक जटिलताओं में फंसे हैं, वहीं चीन के साथ बढ़ता व्यापार असंतुलन भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSMEs) के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर रहा है।
1. अमेरिकी टैरिफ: अनिश्चितता का दौर
अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर लगाया गया 50 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क (Tariff) भारत के लिए एक बड़ा झटका है। हालांकि, भारत का समग्र निर्यात बढ़ रहा है, लेकिन एक स्थायी 'ट्रेड डील' के अभाव में विदेशी निवेशक (FIIs) भारतीय बाजार को लेकर आशंकित हैं।
2. चीन का संकट: 100 अरब डॉलर का घाटा
अमेरिकी टैरिफ से भी बड़ी समस्या चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा है, जो 100 अरब डॉलर के पार पहुंच चुका है। यह घाटा एक 'दीमक' की तरह है क्योंकि:
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एमएसएमई पर प्रहार: चीन से आने वाले सस्ते सामान भारतीय छोटे उद्योगों की कमर तोड़ रहे हैं।
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अत्यधिक निर्भरता: छतरियों (85% चीन से), चश्मों और यहाँ तक कि कृषि मशीनरी (90% चीन से) जैसी वस्तुओं के लिए भारत पूरी तरह चीन पर निर्भर है।
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आंकड़ों की भयावहता: वित्त वर्ष 2026 के शुरुआती 8 महीनों में भारत ने चीन को 12.2 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि वहां से 84.2 अरब डॉलर का माल मंगाया। यह 72 अरब डॉलर का घाटा केवल 8 महीनों का है।
बजट 2026: 'ड्रैगन' को रोकने का सरकारी प्लान
भारत सरकार अब इस निर्भरता को खत्म करने के लिए बजट 2026 में कड़े कदम उठा सकती है। सरकार का लक्ष्य 'सिंगल सोर्स सप्लाई चेन' के जोखिम को कम करना है।
सरकार की रणनीतिक योजना:
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सीमा शुल्क में बढ़ोतरी: सरकार ने 100 ऐसी वस्तुओं की सूची तैयार की है जिनका आयात स्थानीय उत्पादन के बावजूद अधिक है। इन पर आयात शुल्क (Import Duty) को मौजूदा 7.5%-10% से बढ़ाकर कहीं अधिक किया जा सकता है।
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लक्षित प्रोत्साहन (PLI का विस्तार): इंजीनियरिंग सामान, इस्पात उत्पाद, मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुओं (जैसे सूटकेस और फ्लोरिंग) के लिए वित्तीय सहायता और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) का ऐलान हो सकता है।
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क्वालिटी कंट्रोल: स्थानीय उत्पादों की गुणवत्ता सुधारने के लिए कड़े मानक लागू किए जाएंगे ताकि वे चीन के सस्ते लेकिन निम्न स्तर के सामान का मुकाबला कर सकें।
व्यापार घाटे का गणित
वित्त वर्ष 2026 (अप्रैल-नवंबर) के बीच भारत का कुल माल आयात 515.2 अरब डॉलर रहा, जबकि निर्यात केवल 292 अरब डॉलर। यह बढ़ता अंतर पॉलिसी मेकर्स के लिए चिंता का विषय है। खासकर उन देशों के साथ जहाँ भारत का 'नॉन-ऑयल ट्रेड' (बिना तेल वाला व्यापार) बहुत अधिक है, वहां सरकार आयात पर सख्ती करने जा रही है।