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स्विगी या जोमैटो से प्लेटफॉर्म में कितना कमाते हैं एक गिग वर्कर्स, 1,2 नहीं इतनी हैं मुसीबतें

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Posted On:Friday, December 26, 2025

टेक्नोलॉजी के इस दौर में स्विगी, जोमैटो, ओला और उबर जैसी कंपनियों ने हमारी जीवनशैली को बेहद आसान बना दिया है। एक क्लिक पर खाना घर पहुंच जाता है और एक टैप पर कैब दरवाजे पर खड़ी होती है। लेकिन इस सुविधा को संभव बनाने वाले गिग वर्कर्स (Gig Workers) आज खुद को एक गहरे संकट में पा रहे हैं। अपनी मांगों को लेकर इन वर्कर्स ने 25 दिसंबर को हड़ताल की और अब नए साल की पूर्व संध्या यानी 31 दिसंबर को भी एक बड़ी हड़ताल की चेतावनी दी है।

कौन हैं ये गिग वर्कर्स?

गिग वर्कर्स वे स्वतंत्र ठेकेदार होते हैं जो पारंपरिक 9-से-5 की नौकरी के बजाय 'लचीले आधार' पर काम करते हैं। वे किसी कंपनी के स्थायी कर्मचारी नहीं होते, बल्कि प्रति कार्य (टास्क) या प्रति ऑर्डर के आधार पर भुगतान प्राप्त करते हैं। सैद्धांतिक रूप से उन्हें काम करने के समय और तरीके की आजादी होती है, लेकिन व्यवहार में यह आजादी 'मजबूरी' में बदल चुकी है।

14 घंटे का काम और कम वेतन

गिग वर्कर्स की सबसे बड़ी समस्या काम के घंटों का अनिश्चित और अत्यधिक होना है। 'इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स' के सर्वे के अनुसार:

  • लगभग 83% कैब ड्राइवर रोजाना 10 घंटे से ज्यादा काम करते हैं।

  • 31% से अधिक ड्राइवर दिन में 14 घंटे से भी ज्यादा समय सड़क पर बिताते हैं।

  • सामाजिक असमानता भी यहाँ स्पष्ट दिखती है, जहाँ आर्थिक तंगी के कारण SC/ST समुदाय के 60% से अधिक वर्कर्स को सबसे अधिक समय तक काम करना पड़ता है।

इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद कमाई का आंकड़ा चौंकाने वाला है। सर्वे बताता है कि 43% गिग वर्कर्स सभी खर्च (पेट्रोल, मेंटेनेंस) काटकर दिन के 500 रुपये भी नहीं कमा पाते। यानी उनकी मासिक आय 15,000 रुपये से भी कम रह जाती है, जो आज के महंगाई के दौर में एक परिवार चलाने के लिए नाकाफी है।


खर्च ज्यादा, कमाई कम: कर्ज का दुष्चक्र

रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 76% डिलीवरी पार्टनर्स को अपना घर चलाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से 68% ड्राइवरों की स्थिति ऐसी है कि उनके मासिक खर्च उनकी कुल कमाई से ज्यादा हैं। नतीजा यह होता है कि इन वर्कर्स को अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए कर्ज लेना पड़ता है, जिससे वे कर्ज के ऐसे जाल में फंस जाते हैं जहाँ से निकलना नामुमकिन हो जाता है।

कमीशन का गणित और असंतोष

कंपनियों और वर्कर्स के बीच विवाद की एक बड़ी वजह कमीशन है।

  • कंपनियां आधिकारिक तौर पर दावा करती हैं कि वे किराए या ऑर्डर का 20% हिस्सा काटती हैं।

  • लेकिन वर्कर्स का आरोप है कि हिडन चार्जेस और अन्य कटौती के बाद यह हिस्सा 31% से 40% तक पहुंच जाता है। यही कारण है कि 80% कैब ड्राइवर और 73% डिलीवरी पार्टनर मौजूदा पे-स्ट्रक्चर से बेहद नाखुश हैं।

[Image showing a comparison chart: Company's Commission Claim (20%) vs. Actual Deduction felt by Workers (35%+)]

गिग वर्कर्स की प्रमुख मांगें

आगामी 31 दिसंबर की हड़ताल के जरिए वर्कर्स यूनियन निम्नलिखित मांगें सरकार और कंपनियों के सामने रख रहे हैं:

  1. न्यूनतम आय की गारंटी: प्रति ऑर्डर या प्रति किलोमीटर एक सम्मानजनक रेट तय हो।

  2. सामाजिक सुरक्षा: दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य बीमा और पेंशन जैसी सुविधाएं मिलें।

  3. काम की स्थिति: काम के घंटों की सीमा तय हो और ऐप द्वारा बेवजह 'आईडी ब्लॉक' करने की मनमानी बंद हो।

  4. कानूनी दर्जा: गिग वर्कर्स को स्वतंत्र ठेकेदार के बजाय 'कर्मचारी' का दर्जा या विशेष कानूनी संरक्षण मिले।

निष्कर्ष

टेक्नोलॉजी ने हमें सुविधा तो दी है, लेकिन इसके पीछे छिपे मानवीय श्रम का शोषण चिंताजनक है। गिग वर्कर्स की यह हड़ताल एक बड़े व्यवस्थागत बदलाव की मांग कर रही है। यदि कंपनियों और सरकार ने समय रहते इन 'अदृश्य श्रमवीरों' की सुध नहीं ली, तो यह डिजिटल इकोनॉमी का ढांचा चरमरा सकता है।


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