भारत के ऊर्जा क्षेत्र में रविवार को एक ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के शीतकालीन सत्र में पारित शांति बिल 2025 (SHANTI Bill 2025) को अपनी मंजूरी दे दी है। इस बिल का पूरा नाम 'सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया' है। यह कानून न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में दशकों से चले आ रहे सरकारी एकाधिकार को भी समाप्त कर देगा।
क्यों जरूरी था 'शांति' बिल?
अब तक भारत में Atomic Energy Act, 1962 प्रभावी था, जिसके तहत केवल केंद्र सरकार या उसकी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) को ही परमाणु संयंत्र लगाने और संचालित करने का अधिकार था। प्राइवेट सेक्टर के लिए इस क्षेत्र के दरवाजे पूरी तरह बंद थे।
सरकार का लक्ष्य साल 2047 तक 100 GW न्यूक्लियर एनर्जी का उत्पादन करना है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल सरकारी कंपनियों के भरोसे इस विशाल लक्ष्य को पाना संभव नहीं था। इसीलिए, नए कानून के जरिए Atomic Energy Act, 1962 और Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010 को रद्द कर एक आधुनिक कानूनी फ्रेमवर्क तैयार किया गया है। इससे निजी निवेश के रास्ते खुलेंगे और वैश्विक तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
अडानी ग्रुप की न्यूक्लियर सेक्टर पर नजर
जैसे ही सरकार ने नीतिगत बदलाव के संकेत दिए, देश के बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी। इसमें अडानी ग्रुप सबसे आगे नजर आ रहा है। गौतम अडानी के छोटे बेटे और अडानी ग्रुप के वाइस प्रेसिडेंट जीत अडानी ने हाल ही में 'निक्केई एशिया' को दिए साक्षात्कार में समूह की महत्वाकांक्षी योजनाओं का खुलासा किया।
जीत अडानी के मुताबिक, भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डेटा सेंटर्स के हब के रूप में उभरने के लिए प्राकृतिक रूप से मजबूत स्थिति में है। भारत में डेटा की मांग जिस तेजी से बढ़ रही है, उसे सपोर्ट करने के लिए भारी मात्रा में चौबीसों घंटे बिजली (Baseload Power) की जरूरत है, जिसे न्यूक्लियर एनर्जी के जरिए प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकता है।
डेटा सेंटर्स और क्लीन एनर्जी का संगम
आज के डिजिटल युग में ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर एआई टूल्स तक, हर चीज के पीछे डेटा सेंटर्स काम कर रहे हैं। ये केंद्र 24*7 चलते हैं, जिसके लिए ऐसी बिजली चाहिए जो कभी कटे नहीं और जो पर्यावरण के अनुकूल भी हो। न्यूक्लियर एनर्जी 'क्लीन एनर्जी' का एक उत्कृष्ट स्रोत है क्योंकि इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता।
अडानी ग्रुप का मास्टर प्लान:
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निवेश: अडानी ग्रीन एनर्जी ने गूगल जैसे वैश्विक दिग्गजों के लिए AI डेटा सेंटर प्रोजेक्ट्स में 5 बिलियन डॉलर तक के निवेश की योजना बनाई है।
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हाइब्रिड मॉडल: कंपनी अपने मौजूदा सोलर और विंड एनर्जी बेस का इस्तेमाल तो करेगी ही, साथ ही 'बेसलोड' जरूरत के लिए न्यूक्लियर प्लांट्स लगाने पर विचार कर रही है।
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संचालन: जीत अडानी ने स्पष्ट किया कि ग्रुप पावर प्लांट्स का मालिक होगा और उन्हें ऑपरेट करेगा, जबकि रिएक्टर निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भागीदारों (Specialized Partners) की मदद ली जाएगी।
प्राइवेट सेक्टर के आने से क्या बदलेगा?
परमाणु ऊर्जा में निजी भागीदारी से देश को कई बड़े फायदे होंगे:
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तेजी से प्रोजेक्ट पूरे होना: निजी कंपनियां अत्याधुनिक तकनीक और बेहतर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के साथ संयंत्रों का निर्माण जल्दी कर सकेंगी।
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रोजगार के अवसर: न्यूक्लियर इंजीनियरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में लाखों नई नौकरियां पैदा होंगी।
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आत्मनिर्भर भारत: घरेलू बिजली की मांग पूरी होने से विदेशी ईंधन पर निर्भरता कम होगी और भारत एक 'एनर्जी सरप्लस' राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर होगा।
निष्कर्ष: शांति बिल 2025 भारत के ऊर्जा इतिहास का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है। अडानी ग्रुप जैसे बड़े खिलाड़ियों की एंट्री से न्यूक्लियर सेक्टर में न केवल प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बल्कि भारत के 2047 के विकसित राष्ट्र बनने के संकल्प को भी नई ऊर्जा मिलेगी।