भारतीय रेलवे का कुल पूंजीगत व्यय (Capex) FY27 में 2.75 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस विशाल राशि का लगभग आधा हिस्सा (47% से अधिक) केवल सुरक्षा और एक्सीडेंट प्रिवेंशन पर खर्च किया जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में हुए रेल हादसों ने सरकार को 'सुरक्षा पहले' की नीति अपनाने पर मजबूर किया है।
'कवच' (Kavach): भारत की स्वदेशी सुरक्षा ढाल
इस बढ़े हुए बजट का सबसे बड़ा हिस्सा 'कवच' (Kavach) सिस्टम के विस्तार पर खर्च होगा। यह एक 'जीरो एक्सीडेंट' लक्ष्य को प्राप्त करने वाली तकनीक है।
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कार्यप्रणाली: यह सिस्टम रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक पर काम करता है। यदि दो ट्रेनें एक ही ट्रैक पर आमने-सामने आ जाती हैं या कोई पायलट सिग्नल तोड़ता है, तो 'कवच' स्वतः ही ब्रेक लगा देता है।
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वर्जन 4.0: नया वर्जन 4.0 अब 160 किमी/घंटा तक की गति वाली ट्रेनों को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है।
इन 3 कंपनियों की चमकेगी किस्मत
रेलवे सुरक्षा पर बढ़ते फोकस और 'कवच' के 40,000 किलोमीटर के नेटवर्क में विस्तार की योजना ने तीन भारतीय कंपनियों को निवेशकों की रडार पर ला दिया है:
1. HBL Engineering: मार्केट लीडर
HBL ने कवच तकनीक को विकसित करने में दो दशक लगाए हैं। यह v4.0 सर्टिफिकेशन प्राप्त करने वाली पहली कंपनी बनी है।
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ऑर्डर बुक: कंपनी के पास वर्तमान में करीब 4,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं।
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भविष्य: FY26 से FY28 के बीच कंपनी को हर साल 1,300-1,500 करोड़ रुपये की केवल 'कवच' से बिक्री की उम्मीद है।
2. Kernex Microsystems: सुरक्षा विशेषज्ञ
Kernex एक 'प्योर प्ले' रेलवे सेफ्टी कंपनी है। यह उन चुनिंदा तीन कंपनियों में शामिल है जिन्होंने 'कवच' को मूल रूप से डिजाइन किया है।
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ऑर्डर बुक: 30 सितंबर 2025 तक कंपनी के पास 2,563 करोड़ रुपये के ऑर्डर थे।
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चुनौती: SIL-4 सुरक्षा मानकों (जो कि सुरक्षा का उच्चतम वैश्विक स्तर है) को बनाए रखना इस कंपनी की सबसे बड़ी विशेषज्ञता और एंट्री बैरियर है।
3. Concord Control Systems: उभरता हुआ खिलाड़ी
Concord अपनी सहयोगी कंपनी 'प्रोगोटा इंडिया' के माध्यम से इस क्षेत्र में उतरी है। कंपनी का दावा है कि उनका सिस्टम दुनिया के सबसे किफायती SIL-4 प्रणालियों में से एक है।
निष्कर्ष: 2030 तक का मिशन
सरकार का लक्ष्य 2030-32 तक सभी हाई-डेंसिटी रूट्स को 'कवच' से कवर करना है। FY27 का प्रस्तावित बजट इस मिशन की रीढ़ साबित होगा। हालांकि ये कंपनियां लंबी अवधि के लाभ की स्थिति में हैं, लेकिन निवेशकों के लिए जोखिम यह है कि इन कंपनियों की कमाई पूरी तरह से सरकारी टेंडरों और भारतीय रेलवे के कार्यान्वयन की गति पर निर्भर करती है।