मुंबई, 09 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने गुरुवार को वकील राकेश किशोर की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी। 71 वर्षीय राकेश किशोर ने 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के अंदर मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की थी। SCBA ने कहा कि वकील का यह आचरण पेशेवर नैतिकता, शिष्टाचार और अदालत की गरिमा का गंभीर उल्लंघन है। घटना के बाद कोर्ट परिसर में सुरक्षा व्यवस्था और वकीलों के आचरण को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
CJI बीआर गवई ने इस घटना पर कहा कि 6 अक्टूबर की घटना से वे और अन्य जज हैरान हुए थे, लेकिन अब वे इसे भूलकर आगे बढ़ चुके हैं। वहीं, जस्टिस उज्जल भुइयां ने टिप्पणी की कि ऐसा व्यवहार सुप्रीम कोर्ट का अपमान है और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इस बीच, बेंगलुरु में ऑल इंडिया एडवोकेट्स एसोसिएशन ने राकेश किशोर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है। पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 132 और 133 के तहत मामला दर्ज किया है। हालांकि, CJI गवई ने खुद शिकायत दर्ज करवाने से इनकार कर दिया था।
घटना के दिन कोर्ट की कार्यवाही चल रही थी, जब राकेश किशोर ने अचानक जूता फेंकने की कोशिश की। जूता CJI तक नहीं पहुंचा और सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत वकील को पकड़ लिया। उसने उस दौरान “सनातन का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान” जैसे नारे लगाए। पुलिस ने वकील को हिरासत में लेकर तीन घंटे पूछताछ की और बाद में छोड़ दिया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने कोई आधिकारिक शिकायत नहीं की थी।
घटना के तुरंत बाद SCBA ने आरोपी की मेंबरशिप खत्म कर दी थी, जबकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भी उसे निलंबित कर दिया। BCI चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि राकेश किशोर का यह कदम वकीलों की आचार संहिता का उल्लंघन है। निलंबन की अवधि के दौरान वे देश में कहीं भी वकालत नहीं कर सकेंगे। BCI ने 15 दिनों के भीतर उन्हें शो कॉज नोटिस जारी करने का भी आदेश दिया है। 7 अक्टूबर को मीडिया से बातचीत में राकेश किशोर ने कहा था कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है। उनका दावा था कि CJI गवई के भगवान विष्णु को लेकर दिए गए बयान से वे आहत थे, और यह उनकी प्रतिक्रिया थी। उन्होंने कहा कि वे नशे में नहीं थे और अपने कदम को सही मानते हैं।
यह विवाद 16 सितंबर को दिए गए CJI गवई के उस आदेश से जुड़ा है जिसमें उन्होंने खजुराहो के जवारी (वामन) मंदिर में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की बहाली की मांग को खारिज किया था। CJI ने कहा था कि मूर्ति जैसी स्थिति में है, वैसी ही रहेगी, और श्रद्धालु चाहें तो किसी दूसरे मंदिर में पूजा कर सकते हैं। याचिकाकर्ता ने इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला फैसला बताया था। इसी निर्णय से नाराज होकर राकेश किशोर ने यह कदम उठाया। यह घटना न केवल अदालत की गरिमा पर हमला मानी जा रही है, बल्कि न्यायपालिका की सुरक्षा और स्वतंत्रता को लेकर भी एक नई बहस शुरू कर चुकी है।