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अगर आप 60 दिनों तक रोज चबाएंगे अदरक का एक टुकड़ा, तो शरीर में होंगे ये बड़े बदलाव

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Posted On:Wednesday, December 24, 2025

मुंबई, 24 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) भारतीय रसोई का अहम हिस्सा अदरक न केवल खाने का स्वाद बढ़ाता है, बल्कि आयुर्वेद में इसे 'महाऔषधि' माना गया है। हाल ही में 'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार 60 दिनों (करीब 2 महीने) तक रोजाना अदरक का एक छोटा टुकड़ा चबाता है, तो उसके शरीर पर इसके काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।

विशेषज्ञों का क्या कहना है?

थाणे स्थित केआईएमएस (KIMS) अस्पताल की मुख्य आहार विशेषज्ञ (Chief Dietitian) डॉ. अमरीन शेख के अनुसार, अदरक में शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। उन्होंने बताया कि 6 से 8 हफ्तों तक नियमित रूप से इसका सेवन करने से शरीर में निम्नलिखित बदलाव देखे जा सकते हैं:

  • श्वसन तंत्र में सुधार: अदरक चबाने से गले की खराश धीरे-धीरे कम होती है और वायुमार्ग (airways) को आराम मिलता है। यह फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार करता है और प्रदूषण के कारण होने वाली जलन से राहत दिलाता है।
  • पाचन में मजबूती: 60 दिनों के भीतर लोग अक्सर कम गैस (bloating) और बेहतर पाचन महसूस करते हैं। यह पेट के भारीपन को कम करने में सहायक है।
  • बलगम से राहत: अदरक का गर्म प्रभाव बलगम को ढीला करने में मदद करता है, जिससे संक्रमण के दौरान इसे शरीर से बाहर निकालना आसान हो जाता है।
  • सूजन में कमी: शरीर के पुराने दर्द या मांसपेशियों की सूजन में भी इसके सेवन से राहत मिल सकती है।

कितनी मात्रा है सही?

डॉ. शेख ने स्पष्ट किया कि अदरक एक सहायक भोजन है, न कि दवा का विकल्प। रोजाना अंगूठे के आकार का एक छोटा टुकड़ा या 2-3 पतली स्लाइस पर्याप्त हैं।

किन्हें बरतनी चाहिए सावधानी? हालांकि अदरक फायदेमंद है, लेकिन विशेषज्ञों ने कुछ चेतावनियां भी दी हैं:
  • एसिडिटी: जिन लोगों को पहले से ही गंभीर एसिडिटी या गैस्ट्राइटिस की समस्या है, उन्हें कच्चा अदरक चबाने से सीने में जलन हो सकती है। ऐसे लोग अदरक के पानी का सेवन कर सकते हैं।
  • ब्लड थिनर: जो लोग खून पतला करने वाली दवाएं ले रहे हैं, उन्हें डॉक्टर की सलाह के बाद ही इसे आदत बनाना चाहिए, क्योंकि अदरक में प्राकृतिक रूप से खून को थोड़ा पतला करने के गुण होते हैं।

निष्कर्ष: विशेषज्ञों का मानना है कि जीवनशैली में इस छोटे से बदलाव से इम्युनिटी और फेफड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है, लेकिन किसी भी गंभीर बीमारी (जैसे अस्थमा या सीओपीडी) के मामले में इसे डॉक्टरी इलाज का विकल्प नहीं मानना चाहिए।


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