साल 2025 अपने अंतिम पड़ाव पर है और बीते पांच वर्षों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग (निर्माण) क्षमता ने केवल रफ्तार ही नहीं पकड़ी है, बल्कि अपना स्वरूप भी बदला है। 'मेक इन इंडिया' जो कभी एक विजन था, आज 'आईफोन' के डिब्बे पर छपे "Assembled in India" और फोर्ड (Ford) जैसी दिग्गज कंपनियों की वापसी से हकीकत में बदल चुका है।
इलेक्ट्रॉनिक्स: असेंबली से कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग की ओर
चीन का मॉडल 'सस्ते श्रम' पर टिका था, लेकिन भारत 'स्किल्ड मैनपावर' और 'टेक्नोलॉजी' के मेल से अपनी राह बना रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भारत ने लंबी छलांग लगाई है। 2025 तक भारत केवल फोन जोड़ने का केंद्र नहीं रहा, बल्कि एप्पल (Apple) और सैमसंग (Samsung) जैसी कंपनियों के लिए एक रणनीतिक उत्पादन हब बन गया है।
असली बदलाव 2026 में तब दिखेगा जब भारत 'कंपोनेंट ईकोसिस्टम' पर ध्यान केंद्रित करेगा। अब लक्ष्य केवल फोन जोड़ना नहीं, बल्कि फोन के भीतर लगने वाले कैमरा मॉड्यूल, डिस्प्ले और पीसीबी (PCB) को स्थानीय स्तर पर बनाना है। यदि भारत इसमें सफल होता है, तो यह चीन के प्रभुत्व को सीधी चुनौती होगी।
सेमीकंडक्टर और बैटरी: भविष्य की नई रीढ़
आज के दौर में जो देश 'चिप' (Chip) और 'बैटरी' पर नियंत्रण रखेगा, वही दुनिया की अर्थव्यवस्था को चलाएगा। भारत ने सेमीकंडक्टर मिशन के तहत साहसी कदम उठाए हैं।
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चिप इकोसिस्टम: 2026 में सफलता का पैमाना केवल चिप का उत्पादन नहीं, बल्कि एक संपूर्ण 'डिजाइन-टू-मैन्युफैक्चर' इकोसिस्टम होगा।
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एनर्जी स्टोरेज: इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और सौर ऊर्जा की बढ़ती मांग ने बैटरी मैन्युफैक्चरिंग को अनिवार्य बना दिया है। दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Minerals) की प्रोसेसिंग में आत्मनिर्भरता ही हमें चीन पर निर्भरता से मुक्त करेगी।
रोजगार और कौशल: सबसे बड़ी चुनौती
चीन की सफलता में लाखों ग्रामीण आबादी का फैक्ट्रियों में समाहित होना एक बड़ा कारक था। भारत के पास युवा आबादी तो है, लेकिन 'स्किल गैप' (कौशल की कमी) एक बड़ी बाधा है। आज की फैक्ट्रियां अत्यधिक ऑटोमेटेड हैं, इसलिए 2026 में भारत की नई लेबर पॉलिसी और वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम्स की कड़ी परीक्षा होगी। भारत का लक्ष्य केवल फैक्ट्रियां लगाना नहीं, बल्कि स्थायी और गरिमापूर्ण रोजगार पैदा करना होना चाहिए।
चीन प्लस वन (China Plus One) और वैश्विक समीकरण
पूरी दुनिया आज सप्लाई चेन के लिए "चीन प्लस वन" की रणनीति अपना रही है। अमेरिका और यूरोप के साथ भारत के व्यापार समझौते इस दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। 2026 वह वर्ष हो सकता है जब भारत वैश्विक निवेशकों के लिए न केवल एक विकल्प, बल्कि पहली पसंद बनकर उभरेगा।
निष्कर्ष
2026 शायद वह वर्ष न हो जब हम चीन के उत्पादन आंकड़ों को पूरी तरह पार कर लें, लेकिन यह वह वर्ष निश्चित रूप से होगा जब भारत 'आत्मनिर्भर मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस' के रूप में अपनी नींव पत्थर की तरह मजबूत कर लेगा। भारत अब चीन की नकल नहीं कर रहा, बल्कि अपनी शर्तों पर एक नई औद्योगिक क्रांति लिख रहा है।