दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक बार फिर बयानबाजी का दौर तेज हो गया है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने हाल ही में बीजिंग में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में दावा किया कि चीन ने इस साल भारत और पाकिस्तान के बीच उपजे गंभीर तनाव को कम करने में 'मध्यस्थ' (Mediator) की भूमिका निभाई है।
वांग यी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान के साथ उसका कोई भी विवाद 'द्विपक्षीय' (Bilateral) है और इसमें किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
वांग यी का बयान: 'हॉटस्पॉट' मुद्दों पर चीन का दखल
बीजिंग में "अंतर्राष्ट्रीय स्थिति और चीन के विदेश संबंध" विषय पर बोलते हुए वांग यी ने दुनिया भर में बढ़ती अस्थिरता पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्तमान समय में सबसे अधिक स्थानीय और सीमा पार संघर्ष देखे जा रहे हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने चीन की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा:
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मध्यस्थता की सूची: वांग यी ने दावा किया कि चीन ने न केवल उत्तरी म्यांमार, ईरान परमाणु मुद्दे और फिलिस्तीन-इजराइल संकट में भूमिका निभाई, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया तनाव को सुलझाने में भी सक्रिय रहा।
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शांति का दूत बनने की कोशिश: वांग ने जोर दिया कि बीजिंग दुनिया के 'हॉटस्पॉट' मुद्दों पर स्थायी शांति स्थापित करने के लिए काम कर रहा है।
भारत का रुख: 'सच्चाई चीन के दावे से अलग'
वांग यी का दावा भारत के आधिकारिक बयान के बिल्कुल विपरीत है। मई 2025 में हुए 7-10 दिनों के संघर्ष के बाद भारत सरकार और सुरक्षा प्रतिष्ठानों ने स्पष्ट किया था कि:
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सीधी बातचीत: संघर्ष को रोकने के लिए दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMOs) ने 'हॉटलाइन' पर सीधी बातचीत की थी।
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कोई तीसरा पक्ष नहीं: भारत ने हमेशा अमेरिका या चीन जैसे देशों की मध्यस्थता की पेशकश को ठुकराया है। भारत का मानना है कि शिमला समझौते और लाहौर घोषणापत्र के तहत सभी मुद्दों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के हल किया जाना चाहिए।
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चीन की विश्वसनीयता पर सवाल: विशेषज्ञों का मानना है कि चीन इस तरह के बयान देकर खुद को वैश्विक शांति निर्माता (Global Peacemaker) के रूप में पेश करना चाहता है, जबकि वह खुद सीमा पर भारत के साथ विवादों में उलझा रहता है।
वैश्विक परिदृश्य: अमेरिका बनाम चीन
दिलचस्प बात यह है कि चीन से पहले अमेरिका ने भी इसी तरह के दावे किए थे। दोनों महाशक्तियां दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की होड़ में हैं। वांग यी ने कंबोडिया-थाईलैंड संघर्ष का भी जिक्र किया, जो यह दर्शाता है कि चीन अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामरिक मध्यस्थ के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
निष्कर्ष: कूटनीतिक रस्साकशी
वांग यी का बयान भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती की तरह है। एक तरफ चीन भारत के साथ सीमा विवाद (LAC) को सुलझाने में देरी करता है, वहीं दूसरी ओर वह भारत-पाकिस्तान के बीच 'मददगार' होने का दावा करता है। भारत के लिए अपनी संप्रभुता और द्विपक्षीय वार्ता के सिद्धांत को बनाए रखना सर्वोपरि है, जबकि चीन के ये दावे उसकी 'ग्रैंड ग्लोबल स्ट्रैटेजी' का हिस्सा प्रतीत होते हैं।