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न कानून, न संविधान…सिर्फ 470 फरमानों से चलता है भारत का ये पड़ोसी देश

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Posted On:Wednesday, December 31, 2025

अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति दुनिया के लिए एक गंभीर चेतावनी है। एक ऐसा देश जो कभी आधुनिकता की ओर बढ़ रहा था, आज वह न तो किसी संविधान से संचालित है और न ही किसी वैश्विक कानून से। वहां का शासन अब केवल तालिबान के उन फरमानों पर आधारित है, जो मध्यकालीन सोच को दर्शाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था OCHA की हालिया रिपोर्ट ने अफगानिस्तान के इस अंधकारमय सच को आंकड़ों के साथ दुनिया के सामने रखा है।

फरमानों की सरकार: 470 आदेशों का जाल

तालिबान ने अगस्त 2021 में सत्ता संभालने के बाद से अब तक 470 से अधिक फरमान जारी किए हैं। ये आदेश लिखित कानून के बजाय धार्मिक व्याख्याओं और व्यक्तिगत निर्देशों पर आधारित हैं। इनमें से सबसे अधिक प्रहार महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 79 आदेश सीधे तौर पर महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।

महिलाओं पर अदृश्य बेड़ियां

अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति आज एक "बंद पिंजरे" जैसी हो गई है। शिक्षा और रोजगार पर पहले ही पाबंदी थी, लेकिन अब उनकी सार्वजनिक उपस्थिति पर भी पहरा है।

  • आर्थिक पतन: महिलाओं की श्रम भागीदारी दर गिरकर महज 6 प्रतिशत रह गई है। यह दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे निचले स्तरों में से एक है।

  • मानसिक और सामाजिक दबाव: घर से बाहर निकलने के लिए 'महरम' (पुरुष रिश्तेदार) की अनिवार्यता और हिजाब के सख्त नियमों ने महिलाओं को मानसिक अवसाद और सामाजिक अलगाव की ओर धकेल दिया है।

  • अमर-बिल-मआरूफ कानून: यह कानून तालिबान के 'सदाचार मंत्रालय' को असीमित शक्तियां देता है, जिससे वे महिलाओं की आवाज़, उनके पहनावे और उनकी आवाजाही पर सड़क चलते पाबंदी लगा सकते हैं।

मानवीय संकट: भूख और प्यास का सामना

अफगानिस्तान आज दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकटों में से एक का केंद्र है। विशेष रूप से वे परिवार, जिनकी मुखिया महिलाएं हैं, सबसे अधिक प्रभावित हैं।

संकट का प्रकार प्रभाव का स्तर
महिला मुखिया परिवार 66% को मानवीय मदद की कोई जानकारी नहीं है।
खाद्य असुरक्षा 79% परिवारों के पास पर्याप्त भोजन और साफ पानी नहीं है।
श्रम भागीदारी केवल 6% महिलाएं कार्यरत हैं।

बच्चों का छिनता बचपन: बाल विवाह और तस्करी

जब किसी समाज की आर्थिक स्थिति चरमराती है, तो उसका सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। OCHA की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि 2025 में बाल विवाह के 746 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुने से भी अधिक हैं। गरीबी से तंग आकर परिवार अपनी छोटी बच्चियों की शादी करने या उन्हें मजदूरी में झोंकने को मजबूर हैं। मानव तस्करी और बाल श्रम की बढ़ती घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि अफगानिस्तान का भविष्य अंधकार की ओर बढ़ रहा है।

निष्कर्ष: क्या उम्मीद की कोई किरण है?

अफगानिस्तान आज कानून के शासन (Rule of Law) से नहीं, बल्कि डर के शासन (Rule of Fear) से चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताएं केवल बयानों तक सीमित हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि वहां की आधी आबादी (महिलाएं) को धीरे-धीरे सार्वजनिक जीवन से मिटाया जा रहा है। यदि तालिबान ने अपने इन दमनकारी फरमानों को वापस नहीं लिया, तो अफगानिस्तान आने वाले समय में एक 'विफल राष्ट्र' की चरम सीमा पर होगा।


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