मुंबई, 10 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। पाकिस्तान में सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शहबाज शरीफ की सरकार उन्हें तीनों सेनाओं का प्रमुख यानी चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) बनाने जा रही है। इस पद के साथ ही उन्हें पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की कमांड भी मिल जाएगी। इसके लिए सरकार ने 27वां संविधान संशोधन संसद में पेश किया है, जिसे पाकिस्तान के इतिहास का सबसे विवादास्पद संशोधन कहा जा रहा है।
इस संशोधन विधेयक पर संसद के दोनों सदनों—सीनेट और नेशनल असेंबली—में वोटिंग जारी है। सरकार के पास दोनों सदनों में आवश्यक बहुमत मौजूद है, जिससे यह बिल आसानी से पारित हो सकता है। 96 सदस्यीय सीनेट में सरकार गठबंधन के पास 65 वोट हैं, जबकि नेशनल असेंबली में 233 सांसदों का समर्थन है। इसे पारित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा।
नए प्रावधान के तहत पाकिस्तान की सैन्य संरचना पूरी तरह बदल जाएगी। अब तक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नेशनल कमांड अथॉरिटी (NCA) देश के परमाणु हथियारों की निगरानी करती थी, लेकिन अब यह जिम्मेदारी नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड (NSC) के पास होगी। NSC का प्रमुख भले ही प्रधानमंत्री की मंजूरी से नियुक्त होगा, लेकिन यह नियुक्ति सेना प्रमुख की सिफारिश पर ही होगी। इसका मतलब है कि पाकिस्तान का परमाणु नियंत्रण अब पूरी तरह सेना के हाथों में आ जाएगा।
संविधान के अनुच्छेद 243 में बदलाव के बाद राष्ट्रपति केवल औपचारिक रूप से ‘सशस्त्र बलों का सुप्रीम कमांडर’ रह जाएंगे, जबकि वास्तविक शक्ति CDF यानी सेना प्रमुख के पास होगी। मौजूदा चेयरमैन जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (CJCSC) का पद 27 नवंबर 2025 को समाप्त हो जाएगा, उसी दिन जनरल साहिर शमशाद मिर्जा रिटायर होंगे। इसके बाद आसिम मुनीर को तीनों सेनाओं का संवैधानिक प्रमुख बना दिया जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह संशोधन पाकिस्तान की सत्ता संरचना में ऐतिहासिक बदलाव लाएगा। अब सेना न सिर्फ देश की सुरक्षा नीति बल्कि राजनीतिक निर्णयों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण रखेगी। इससे नागरिक सरकारों की भूमिका कमजोर हो जाएगी और राष्ट्रपति की स्थिति केवल प्रतीकात्मक रह जाएगी।
संविधान संशोधन का दूसरा बड़ा असर न्यायपालिका पर पड़ेगा। इस प्रस्ताव के तहत जजों की नियुक्ति, ट्रांसफर और केस आवंटन की शक्तियां अब सरकार के हाथों में चली जाएंगी। अब यह सरकार तय करेगी कि कौन-सा जज कौन-सा केस सुनेगा। हाईकोर्ट के जजों का तबादला राष्ट्रपति करेंगे, और आदेश न मानने पर जज को जबरन रिटायर माना जाएगा।
इसके अलावा, नए नियम में कहा गया है कि यदि किसी केस की सुनवाई एक साल तक नहीं होती, तो वह अपने आप समाप्त हो जाएगा। इससे सरकार को असुविधाजनक मामलों को टालकर खत्म करने का रास्ता खुल जाएगा। साथ ही एक नई अदालत—फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट—का गठन होगा, जो संविधान से जुड़े मामलों की सुनवाई करेगी। इसके जजों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों की भूमिका होगी, यानी अदालत पर सरकार का सीधा प्रभाव रहेगा।
कानूनी जानकारों और विपक्षी दलों ने इसे पाकिस्तान के लोकतंत्र और न्यायपालिका की आजादी पर सबसे बड़ा हमला बताया है। उनका कहना है कि जिस काम को पूर्व सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ नहीं कर पाए, उसे अब एक निर्वाचित सरकार करने जा रही है। यह बदलाव पाकिस्तान की राजनीतिक प्रणाली को हमेशा के लिए सेना के नियंत्रण में ले जा सकता है।